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भारत के एक बहुत ही बुद्धिमान छात्र को प्रतिष्ठित नेशनल मेडिकल अवार्ड दिया गया क्योंकि उसने जोड़ों की बीमारियों को ठीक करने और जोड़ों के खराब होने से पैदा होने वाली ब्लडपॉइजनिंग से होने वाली अकाल मौतोंको रोकने का एक तरीका खोज लिया था।


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की गर्मियों में यूरोपियन कांग्रेस ऑफ रूमेटोलॉजिस्ट के वार्षिक सम्मेलन में बहुत ही आश्चर्यजनक घटना हुई। पूरे हॉल के बड़े-बड़े डॉक्टर स्टेज पर खड़े हुए एक व्यक्ति के लिए खड़े होकर तालियां बजा रहे थे। यह लड़का और कोई नहीं, एक भारतीय छात्र सुनील जोशी था। इसी भारतीय छात्र ने किसी भी उम्र में हड्डियों के जोड़ों के इलाज और उन्हें नष्ट होने से बचाने का एक नया फार्मूला खोज निकाला था।

सुनील ने एक बहुत ही नया आइडिया सामने रखा था और पूरे यूरोप की वैज्ञानिक संस्थाएं इसे लागू करने लगी है। भारत के कई क्लीनिक और बड़े रिसर्च सेंटरों के विशेषज्ञ भी प्रोडक्ट डेवलपमेंट में जुट गए थे। यह नुस्खा बनाया जा चुका है और इसके रिजल्ट बहुत ही अच्छे हैं।

एक नए नुस्खे से आखिर व्हीलचेयर पकड़े हुए लाखों लोग कैसे ठीक हो सकते हैं और भारतीय नागरिक इसे लगभग फ्री में कैसे पा सकते हैं - इसके बारे में पूरी जानकारी हमारी आज की पोस्ट में पाइए।

रिपोर्टर: "सुनील, आप दुनिया के टॉप 10 मेडिकल छात्रों में आते हैं। आपने आखिर हड्डियों के जोड़ों की बीमारियों पर ही काम करना क्यों चुना?"

देखिए मैं इसके बारे में सार्वजनिक रूप से ज्यादा बात नहीं करना चाहता लेकिन आपको बता देता हूँ कि इसके पीछे के कारण निजी थे। कई साल पहले मेरी माँ का जोड़ों के खराब होने से होने वाली ब्लड पॉइजनिंग के कारण देहांत हो गया था। पहले तो मम्मी को सिर्फ जोड़ों में थोड़ा दर्द होता था और मुझे ज्यादा चिंता नहीं होती थी क्योंकि वह अपने दर्द के बारे में बात ही नहीं करती थी। लेकिन इसके बाद ब्लड पॉइजनिंग हो गई क्योंकि डॉक्टरों ने उन पर ठीक से ध्यान नहीं दिया और गलत इलाज किया। यही कारण है कि आज मम्मी मेरे साथ नहीं है।

इसके पहले, मेरी दादी भी इसी बीमारी से गुज़र गई थी। तभी से मैंने जोड़ों की बीमारियों और उनके इलाज के बारे में पढ़ना शुरू कर दिया। मैं तो दंग रह गया जब मुझे पता चला कि आप दवाई की दुकान से जो दवाइयाँ खरीदते हैं वे बेकार के केमिकल है जो स्थिति को और बिगाड़ देते हैं। मेरी मम्मी तो रोजयेदवाइयाँलेतीथीं।

मैं पिछले 3 साल से इस विषय पर बहुत पढ़ाई कर रहा हूँ। आज जिस नए तरीके के बारे में आज सब बातें कर रहे हैं वह मेरे दिमाग में तब आया था जब मैं अपने फाइनल ईयर में था। मैं तभी समझ गया था कि मैंने कुछ नया खोज लिया है लेकिन यह अंदाजा नहीं था कि इतनी सारी कंपनियां और रिसर्च सेंटर इसके पीछे पड़ जाएंगे।

रिपोर्टर: "आप कौन सी कंपनियों की बात कर रहे हैं?"

जैसे ही मेरे इस नए तरीके के बारे में मेरे पहले लेख प्रकाशित हुए तो मुझे मेरे आइडिया को बेचने के कई ऑफर आने लगे। सबसे पहले फ्रांस के लोग आए जिन्होंने मुझे 1,20,000 यूरो का ऑफर दिया। मुझे आखरी ऑफर एक अमेरिकन फार्मास्यूटिकल होल्डिंग कंपनी से आया था जो मेरे आइडिया के लिए साढ़े तीन करोड़ डॉलर देने को तैयार थे। मैं तो इन लोगों से इतना परेशान हो गया कि मुझे अपना फोन नंबर बदलना पड़ा और मैंने अपने सोशल मीडिया के अकाउंट में लॉगिन करना भी बंद किया क्योंकि यह लोग रोज मुझसे बात करने की कोशिश करते थे और मुझे ढूंढते रहते थे।

रिपोर्टर: "लेकिन जहां तक मुझे पता है आपने यह फार्मूला नहीं बचा, यह सही है ना?"

मैंने इसे नहीं बेचा। कोई और होता तो ऐसा नहीं करता लेकिन मैंने यह नया तरीका इसलिए नहीं खोजा कि विदेश के लोग इसे पैसा कमा सके। जरा सोचिए यदि मैं इसे विदेश में भेज देता तो क्या होता है? यह लोग इसका पेटेंट करा लेते, दूसरी किसी कंपनी को इसे बनाने से रोकते और खुद बनाकर महंगे रेट पर बेचते। ऐसे में भारतीय आम लोग इस नए तरीके का फायदा कैसे उठा पाते? विदेश के डॉक्टर ने तो मुझसे कहा था कि ऐसी चीज की कीमत कम से कम $3,000 होनी चाहिए। लेकिन मेरी नज़रों में यह बिल्कुल गलत है, आप ही बताइए भारत में कितने लोग इसके लिए इतनी कीमत चुका सकते हैं।

यही कारण है कि मैंने भारत के एक मेडिसीन सेंटर के द्वारा अपने ही देश में प्रोडक्ट डेवलपमेंट का ऑफर स्वीकार कर लिया। हमने देश भर के बड़े मेडिकल सेंटर के स्पेशलिस्ट के साथ काम किया और नतीजे बहुत अच्छे रहे। आप प्रोडक्ट के क्लिनिकल ट्रायल पूरे हो चुके हैं और यह लोगों के लिए उपलब्ध है।

प्रोडक्ट का डेवलपमेंट मेडिकल सेंटर के रिप्रेजेंटेटिव मुकेश त्रेहान जी की देखरेख में हुआ जो रूमेटोलॉजी डिपार्टमेंट में काम करते हैं और 20 साल से भी ज्यादा का अनुभव रखते हैं।

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रिपोर्टर: "सुनील जोशी के आइडिया में आखिर ऐसा क्या है? क्या यह वाकई में किसी भी उम्र के लोगों के जोड़ों को फिर से ठीक कर सकता है?"

सुनील का तरीका जोड़ों की बीमारियों को ठीक करने के लिए एक बिल्कुल नई चीज है और अनुवांशिक कारणों से हुई खराबियों के मामलों में भी असर करता है। आज के डॉक्टरों के लिए यह कोई सीक्रेट नहीं है कि दवाई की दुकानों में बेची जाने वाली दवाइयाँ सिर्फ शुरुआती स्टेज पर काम करती हैं। कुछ ऐसे लालची डॉक्टर भी होते हैं जो अपने मरीज़ों को ढेरों दवाइयाँ लिख देते हैं और वह हमेशा इन पर निर्भर हो जाता है। जब पेशेंट की हालत इतनी खराब हो जाती है कि उसे चलने फिरने में भी बहुत दर्द होने लगता है तो उसका ऑपरेशन करवा दिया जाता है।

इन लोगों के लिए डॉक्टरी सिर्फ एक बिज़नेस है - मरीज़ को ठीक करने में किसी को दिलचस्पी नहीं होती।

20 साल पहले सन् 2000 के आसपास ही हमारे डॉक्टर यह समझ चुके थे कि 90% जोड़ों की बीमारियाँ सिर्फ एक कारण से होती है - जोड़ों के उतकों में खून का ठीक से प्रवाह नहीं होना। इससे धीरे-धीरे जोड़ खराब हो जाते हैं और उनके आसपास के उतकों में संक्रमण हो जाता है। यदि बीमारी का यह मुख्य कारण दूर हो जाए तो महंगे ऑपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

सुनील के आइडिया से ह्यूमन लोको मोटर सिस्टम में खून का प्रवाह बैलेंस हो जाता है। इससे शुरुआती स्टेज में जोड़ों के नष्ट होने का जोखिम दूर हो जाता है। लेकिन जहां स्थिति सीरियस हो चुकी है और जोड़ पूरी तरह हिलना-डुलना बंद कर चुके हैं वहां यह काम नहीं कर पाता। यही कारण है कि सुनील के बनाए हुए फार्मूला पर बड़ी संख्या में डॉक्टरों मेडिकल स्पेशलिस्ट ने काम किया था ताकि इस पर आधारित एक ऐसा प्रोडक्ट बनाया जा सके जो जोड़ों के उतकों को ठीक करके हर उम्र में जोड़ों में लचक ला सके।

रिपोर्टर: "लेकिन ऐसा माना जाता है कि बिना ऑपरेशन के जोड़ ठीक किए ही नहीं जा सकते और 40 से अधिक की उम्र वालों में तो यह असंभव है।"

यह बेकार की बात है। देखिए दवाई कंपनियों को पैसा बनाना है। यह काफी समय पहले ही प्रमाणित हो चुका है कि हमारा शरीर खुद को ठीक करने की क्षमता रखता है, आपको बस उसकी थोड़ी मदद करनी होती है - आपको उसका इन्फ्लेमेशन कम करना है, खून का प्रवाह बढ़ाना है और मृत कोशिकाओं और विषैले पदार्थों को शरीर से निकालने की प्रक्रिया तेज करनी है।

रिपोर्टर: "पुराने जमाने में जोड़ कैसे ठीक किए जाते थे? आज के दिन दवाई की दुकानों में इसके लिए कितनी तरह की दवाइयाँ मिलती हैं"

यह सही है, आज कई तरह के प्रोडक्ट मिलते हैं, लेकिन यही तो दिक्कत है। यह सभी प्रोडक्ट उसी सिद्धांत पर आधारित है जो मैंने इंटरव्यू के शुरू में आपको बताया था। यह सब बस लक्षणों में आराम देते हैं - ये इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते। आदमी को बस थोड़े समय के लिए अच्छा लगता है लेकिन इनसे हड्डी के जोड़ों को फायदे की जगह नुकसान ज्यादा होता है। यदि आप दवाई की दुकानों में मिलने वाले प्रोडक्ट के फार्मूला को चेक करेंगे तो समझ जाएंगे कि उन्हें सिर्फ तभी लेना चाहिए जब कोई और रास्ता नहीं बचा हो।

रिपोर्टर: "इन प्रोडक्ट में और आपके प्रोडक्ट में क्या अंतर है? क्या यह जोड़ों को पूरी तरह से ठीक कर देता है?

इस प्रोडक्ट का मुख्य लक्ष्य है खराब हो सके उसको में नई हड्डी और कार्टिलेज टिशू का पुनर्निर्माण करना और रक्त के प्रवाह को बेहतर करना। इससे एक बार उपयोग करने से ही 9,30,000 कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं और जाइंट मोबिलिटी रीस्टोरेशन की प्रक्रिया चालू कर देती है। यह प्रोडक्ट ऐसे ही धीरे-धीरे काम कर और यही इस ट्रीटमेंट का सिद्धांत है।

देखिए मैं यह तो मानता हूँ कि मेरी और सुनील की विधि बीमारी को ठीक करने का थोड़ा अलग तरीका तो था। यह प्रोडक्ट दूसरे प्रोडक्ट की तरह बस अलग-अलग केमिकल फार्मूला का एक नया मिक्चर नहीं है, यह अच्छी सांद्रता वाले हर्बल प्रोडक्ट का एक अनोखा ब्लेंड है। इससे यह प्रोडक्ट ना सिर्फ बेहद असरदार बन जाता है, यह इस ट्रीटमेंट का कोर्स करने वालों के लिए पूरी तरह सुरक्षित भी है।

इस प्रोडक्ट को लेने के एक-दो दिन के बाद से ही जोड़ों में रक्त का प्रवाह वापस आने लगता है। इसके तुरंत बाद जोड़ों की कोशिकाओं और उतकों का पुनर्निर्माण शुरू हो जाता है। इससे काफी सीरियस हो चुके मामलों में भी आराम मिलता है और जो ठीक हो जाते हैं। यही नहीं, दवाई की दुकानों में बेचे जाने वाले दूसरे केमिकल प्रोडक्ट्स की तुलना में Steplex से स्किन में खुजली एलर्जी वगैरह भी नहीं होती।

रिपोर्टर: "लेकिन आपके प्रोडक्ट को दवाई की दुकानों में भी बेचा जाएगा या नहीं? इसकी कीमत क्या रखी गई है?"

मेरे ख्याल से आपको पता होगा कि जैसे ही यह खबर फैली कि इस प्रोडक्ट से कितना बढ़िया असर होता है तो दवाई की बड़ी बड़ी कंपनी पर हमला चालू कर दिया। उन लोगों ने सुनील को अपना फार्मूला बेच देने के लिए भी ऑफर दिया था लेकिन उन लोगों का उद्देश्य इस प्रोडक्ट को बनाना नहीं था, वे तो चाहते थे कि इसका प्रोडक्शन हो ही नहीं। आज के दिन जोड़ों का इलाज फार्मास्यूटिकल मार्केट में बहुत बड़ी कमाई करके देता है। सिर्फ भारत में ही अरबों रुपए की दवाइयाँ हर साल बेची जाती है। हमारा प्रोडक्ट मार्केट की इस स्थिति को पूरी तरह से बदल सकता है। जरा सोचिए, इसके आने के बाद भला कौन हर महीने पुराने बेकार के प्रोडक्ट पर पैसा खर्चा करेगा और यदि Steplex के सिर्फ एक कोर्स से से किसी भी उम्र में जोड़ ठीक हो सके तो ऐसे कितने लोग होंगे जो जाइंटरिप्लेसमेंटऑपरेशनकरवाएंगे?

दवाई कंपनियां और दवाई की दुकानों में गहरी सांठगांठ होती है। दोनों को बस दवाई की बिक्री में दिलचस्पी होती है। आज के दिन हमारा प्रोडक्ट ही मार्केट में ऐसा प्रोडक्ट है जो जोड़ों के दर्द को ठीक कर के ब्लड पॉइजनिंग रोक सकता है और इसके लिए क्लिनिकली प्रमाणित भी है लेकिन इसके बाद भी यह लोग इसके बारे में सुनना तक नहीं चाहते।

रिपोर्टर: "लेकिन इसका रेगुलर रेट क्या रखा गया है?"

देखिए इसे बनाने की कीमत करीब 4980 ₹ प्रति पैकेट है लेकिन हम अभी बहुत अच्छा डिस्काउंट दे रहे हैं और यह हर किसी की पहुंच में है। अभी 50% से अधिक डिस्काउंट चल रहा है। दवाई का उत्पादन करने वाले भी यह समझते हैं कि इस तरह की दवाई को देश की जनता तक पहुंचना बहुत जरूरी है। हमने यह प्रण किया है कि हम इस फार्मूला को कभी विदेश में नहीं भेजेंगे और न इस दवा को एक्सपोर्ट करेंगे, इसे सिर्फ हिन्दी में ही बेचा जाएगा।

पिछला अपडेट: Steplex फिलहाल आपके शहर और आपके राज्य में उपलब्ध है, इसलिए डिस्काउंट मान्य है

यदि आप इसके पहले ऑर्डर दे देते हैं तो आप अधिकतम डिस्काउंट पर Steplex पा सकते हैं।


Старая цена: 4980

Новая цена: 2490